लेखनी कहानी -05-Apr-2022 हंसना जरूरी है
आज सुबह सुबह "लेखन मंच" की सैर के लिए जा रहा था । पिछले दो वर्षों से जबसे पहली बार लॉकडाउन लगा था तबसे लेखन मंच की ही सैर कर रहा हूं । लॉकडाउन के कारण सब कुछ बंद था । बस लेखन मंच, संगीतमंच, मनोरंजन मंच वगैरह ही खुले हुए थे जिनमें जाकर आदमी थोड़ा हंस बोल लेता था । कोरोना कखल में हम तो जिंदा ही इन्हीं मंचों से रहे, वरना दहशत के मारे ही मर जाते ।
घर में तो हंसने पर पाबंदियां लगी हुई हैं । पता नहीं श्रीमती जी को लगता है कि कहीं मैं उन पर तो नहीं हंस रहा हूँ । इसलिए हम जब भी हंसते हैं वे बिल्ली की तरह घूरकर हमें देखने लगती हैं और हम उन निगाहों को देखकर डर कर कहीं छुप जाते हैं । बहुत खतरनाक निगाहें होती हैं वे । मगर डरकर छुप जाने से कोई मुक्ति थोड़ी ना मिल जाती है । बस, मन को संतोष मिल जाता है कि हम अब सेफ हैं । मगर कोई चूहा कभी बिल्ली से सेफ रह सकता है क्या घर में ?
हमारे इस तरह अनावश्यक हंसने पर वे कहतीं हैं "आज के जमाने में जब मंहगाई सुरसा की तरह बढ़ रही है , बेरोजगारी नित नये कीर्तिमान बना रही है । अराजकता हाईवे जाम कर लोगों को मुसीबतों में डाल रही है , कोरोना के कारण दो गज की दूरी से ही बात करनी पड़ रही है । आदमी अपने चेहरे को मास्क से छुपाने को मजबूर हो रहा है जैसे उसके पापों का घड़ा बीच चौराहे पर फूट रहा है । जीवन में ऐसी ऐसी दुश्वारियां आ रही हैं और तुम्हारे होठों पर हंसी आ रही है । आज के जमाने में या तो कोई पागल आदमी ही हंस सकता है या फिर कोई असंवेदनशील व्यक्ति ही हंसने का जोखिम ले सकता है " । और फिर वे शोले के गब्बर सिंह की तरह बोलती हैं "बहुत नाइंसाफी है" । हम और भी डर जाते हैं ।
बड़घ मुश्किल से उनकी चिरौरी करते हुए इतना ही कह पाते हैं "हे देवी, हे विश्व कल्याणी, हे मालकिन, हे प्रणेश्वरी । अगर आप इजाजत दें तो हम अपनी हंसी का कारण बता दें । दरअसल , हंसी का कोई कारण नहीं होता है । हंसी तो ऊलजलूल की बातों पर, हरकतों पर , लेखों पर ही आती है । अब हम अपनी सूरत का क्या करें ? इसे देख देखकर ही लोगों को हंसी आ जाती है । और जब लोग हंसते हैं तो उन्हें देखकर हम भी हंसने लगते हैं ।
"लेखन मंच" के बहुत सारे लोग तो हमारे लेखन पर हंसते हैं । अब ये समझ नहीं आता है कि हमारा लेखन इतना बुरा होता है कि लोग उसे पढ़कर हमारा उपहास उड़ाने के लिए हंसते हैं या फिर वह इतना अच्छा होता है कि उनके चेहरों पर हंसी जबरन उसी तरह से फूट पड़ती है जिस तरह से झरना बहुत सी बाधाओं को चीरकर भी फूट पड़ता है । पर चाहे जो कुछ भी कारण रहा हो , हंसने और हंसाने का काम आसान बिल्कुल नहीं है और यह काम सबसे बड़ा पुण्य का काम होता है "
"वो कैसे" ?
"वो ऐसे कि आज के जमाने में जैसे सच्चाई, ईमानदारी, वफादारी, सहयोग की भावना वगैरह लगभग विलुप्त "गुणों" की श्रेणी में आ गए हैं उसी तरह आदमी के होठों से "हंसी" भी लगभग विलुप्त हो चुकी है । हमारे घुटन्ना मित्र हंसमुख लाल जी जो पैदा होते ही बड़े जोर से हंसे थे , मगर उसके बाद वे आज तक नहीं हंसे । जब उनसे हमने इसका कारण पूछा तो वो कहने लगे "भाईसाहब , हंसना और हंसाना किसी खतरे से खाली नहीं है । घर में हंसता हूँ तो बीवी हंसते देखकर चिढती है और सोचती है कि कोई हमारे ख्वाबों में रहती है इस कारण ही हमें हंसीं आती है वरना तो शादी के बाद लबों पर मुस्कान कहाँ आ पाती है । शादी और सगाई के बीच का समय मिलता है बस, हंसने हंसाने के लिए । उसके बाद तो आदमी की हंसी पर पूर्ण विराम लग जाता है ।
यही हाल पड़ोसी के साथ होता है । पड़ोसी के साथ बात करते समय बहुत ध्यान रखना पड़ता है । कहीं गलती से भी मुस्कुराहट की कोई एक किरण भी अगर पडोसी देख ले तो उसके सीने पर सांप लोटने लग जाते हैं और फिर वह गुस्से से आगबबूला होकर हमारी कब्र खोदने में मशगूल हो जाता है । शास्त्रों में लिखा है कि बीवी, बॉस और पडोसी के सामने भूलकर भी मुस्कुरा मत देना वरना अंजाम क्या होगा कल्पनातीत है ।
अगर गलती से भी बॉस के सामने हंस दिये तो 16-17 सी सी ए में कार्यवाही हो जाती है । बॉस का मानना है कि हंसने पर एकाधिकार केवल बॉस का ही है । मातहतों का काम है रोना । मातहतों के रोते चेहरे देखकर बॉस लोगों को बड़ा आनंद आता है । इससे उनका ईगो संतुष्ट होता है । उनकख दिमाग हमेशा इसी फिराक में रहता है कि मातहतों को कैसे परेशान किया जाये । हमारे बॉस लंच के टाइम में मीटिंग रखते हैं और घर जाने के टाइम पर खुद लंच करके आते हैं और फिर दो घंटे तक पेलते हैं । सब मातहत दुखी हैं । हमको दुखी देखकर उनका खून बढ जाता है ।
और तो और , अगर लेखक लोगों के सामने भी अगर कोई हंस दे तो वे भी बहुत नाराज हो जाते हैं । हास्य रस वाले लेखक हैं जो सबको हंसाते रहते हैं मगर ये श्रंगार रस वाले जो लेखक हैं वे हमेशा इश्क मुहब्बत में ही डूबे रहते हैं । वियोग में रोते चीखते रहते हैं । एक उदासी सी घेरे रहती है इन्हें । उनका मानना है कि दुनिया में अगर कुछ शाश्वत है तो वह है "इश्क" । और अगर इश्क है तो वियोग भी है । और अगर वियोग है तो कोई कैसे हंस सकता है , भाई ?
ऐसे लेखकों का यह भी मानना है कि अगर इश्क है तो सब कुछ है और अगर इश्क नहीं है तो कुछ भी नहीं है । अब ऐसे "दीवाने" शायरों को कैसे समझाएं कि भैया अगर रोटी है तो पेट भरा है और अगर पेट खाली है तो उसमें "इश्क" पैदा करने की ताकत नहीं होती है । इश्क मुहब्बत तो केवर भरे पेट से ही उत्पन्न होती हैं । बस, तब से ही ये श्रंगार रस वाले लेखक हास्य व्यंग्य वाले लेखकों के पीछे पड़े हुए हैं । अगर इनका वश चले तो ये लोग हास्य व्यंग्य वालों को लेखक मानने से ही इंकार कर दें । मगर कुछ बात है हम में कि हस्ती मिटती नहीं हमारी । जनता ने हम जैसे हास्य व्यंग्ययकारों को इतना मान सम्मान दे रखा है कि बाकी सब लेखक लोग चाहकर भी हमारा कुछ नहीं उखाड़ सकते हैं ।
मगर यहां पर भी एक समस्या आ गई है । आजकल इस हास्य व्यंग्य की विधा को "राजनीति" से बहुत कड़ी टक्कर मिल रही है । आजकल राजनीति में ऐसे ऐसे नेता आ रहे हैं कि उनके भाषण किसी "कॉमेडी शो" से भी ज्यादा हंसाते हैं । आजकल लोग ऐसे राजनेताओं के बहुत बड़े फैन हो गए हैं । ऐसे राजनेता कभी आलू से सोना बना देते हैं तो कभी खातों में सीधे 15-15 लाख रुपये डलवा देते हैं । इनके भाषण सुनकर मजा आ जाता है । कोई बच्चों की कसम खाकर फिर जाता है तो कोई कोरोना वैक्सीन को "दल विशेष" की बता देता है । इनको सुन सुन कर हमारा तो हंस हंस कर पेट दुखने लगता है ।
अब तो एक नयी समस्या पैदा होने की संभावना बन गई है । आजकल सरकार भी नये नये टैक्स लगा रही है । तो कुछ "विशेषज्ञों" ने सरकार को सलाह दी है कि "लॉफिंग टैक्स" लगाया जाये । उनका यह कहना है कि सरकारों ने इंसानों का जीना दूभर कर रखा है और यदि फिर भी लोग हंस लेते हैं तो इसका मतलब है कि वे "हंसी एफोर्ड" कर रहे हैं । और यदि हंसी एफोर्ड कर सकते हैं तो फिर वे टैक्स भी भर सकते हैं । तो हो सकता है कि आने वाले दिनों में "लॉफिंग टैक्स" से सामना हो जाये सबका ।
वैसे इससे दुखी होने की कोई जरूरत भी नहीं है । कोई चीज पूरी तरह से खराब नहीं होती है । उसमें भी कुछ न कुछ तो अच्छाई होती ही है । अब यदि लॉफिंग टैक्स लगेगा तो इसे वसूल करने वाले अधिकारी / कर्मचारी भी नियुक्त होंगे । यदि एक बार इस डिपार्टमेंट में अगर अफसर बन गए तो जिंदगी भर हंसने की गारंटी होगी और उस डिपार्टमेंट में होने के कारण उस पर टैक्स भी नहीं देना पड़ेगा" । है ना अच्छी बात ।
हंसमुख लाल जी की विद्वतापूर्ण बातें सुनकर हमारी आंखें खुल गयीं । पर हमारी श्रीमती जी का संशय अभी खत्म नहीं हो पा रहा था । वे कहने लगी "आजकल आप वो 'छमिया भाभी' के गीत बहुत गाने लगे हैं । इससे हमें डर लगने लगा है । आप दोनों मिलकर जब ठहाके लगाते हो तब पूरे मौहल्ले की औरतें जल भुन कर राख हो जाती हैं " ।
इस सत्य को सुनकर हमें बड़ा आनंद आया । हमारी हंसी से कोई जलता भी है तो इससे बढिया और क्या बात हो सकती है । हमारे तो एक पंथ और दो काज हो रहे हैं । हंसने से हम तन मन दोनों से स्वस्थ हो रहे हैं और विरोधी जल भुन कर पस्त हो रहे हैं । इससे बढ़कर और क्या हो सकता है दोस्तों । तो जब तक सरकारें हंसने पर कोई टैक्स नहीं लगा दे, दिन रात हंसो । कोई पागल समझे तो समझे, हमें क्या ? और हां, ये इश्क मुहब्बत वाले लेखकों को भी हंस हंस कर चिढ़ाना है । इनके हौंसले भी पस्त कराने हैं । हास्य व्यंग्य को सिरमौर जो बनाना है । बस, हंसना और हंसाना है ।
हरि शंकर गोयल "हरि"
5.4.2022
Seema Priyadarshini sahay
06-Apr-2022 02:28 PM
Nicely written
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Hari Shanker Goyal "Hari"
06-Apr-2022 07:17 PM
Thanks Mam
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Anam ansari
05-Apr-2022 08:38 PM
Good one
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Hari Shanker Goyal "Hari"
05-Apr-2022 09:42 PM
💐💐🙏🙏
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Gunjan Kamal
05-Apr-2022 05:49 PM
very nice
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Hari Shanker Goyal "Hari"
05-Apr-2022 09:41 PM
बहुत बहुत आभार मैम । 💐💐🙏🙏
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